वसा किसे कहते हैं प्रकार कार्य और कमी से उत्पन्न रोग

वसा किसे कहते हैं प्रकार कार्य और कमी से उत्पन्न रोग

वसा किसे कहते हैं, वसा का महत्व और कार्य, वसा की कमी से हानियाँ, वसा की अधिकता से हानियाँ, वसा की दैनिक आवश्यकता।

वसा किसे कहते हैं?

वसा में केवल कार्बन, हाइड्रोजन, और ऑक्सिजन तत्व पाए जाते हैं। कुछ लिपिड्स में अल्प मात्रा में फास्फोरस बे नाइट्रोजन विधमान होते हैं।यह पानी में नही घुलते है।

किंतु यदि पानी और तेल के मिश्रण में थोड़ा सा क्षार डाल कर मिश्रण को हिलाया जाय तो तेल के कण बहुत छोटे- छोटे कणो में टूट जाते है। ये कण पानी में नही घुलते है। और एक दूधिया विलयन प्राप्त होता है। ऐसे विलयन को पायस कहते है।

वसा का शरीर में पाचन पायस के रूप में ही होता है।

वसा प्राप्ति के स्त्रोत

वसा की प्राप्ति प्राणी जगत और जंतु जगत दोनो से ही होती है।

  • जंतु जगत में यह दूध, दूध से बने उत्पाद, मांस, मछली, अंडे, मस्तिष्क, यक्रत, और पशुओं की चर्बी से प्राप्त होती है।
  • वनास्पतिक जगत में यह बीजों, अनाज से निकले तेलों, एवं सूखे मेवे, नरयिल, आदि में पायी जाती है।

वसा का महत्व और कार्य

  • बसा शरीर में वसा उत्तको के रूप में एकत्र हो जाती है। जिस समय शरीर में अन्य ऊर्जा उत्पादक भोज्य पदार्थ विधमान नही होते हैं उस समय संचित वसा का ऑक्सीकरण होता है तथा शरीर को ऊर्जा मिलती है।
  • कुछ विटामिन जैसे A D E और K केवल वसा में ही घुलनशील होते है। ये वसा में घुलकर ही अवशोषित होते है। जिससे ग्रहण किए भोजन के मूल्य में ब्रद्धि होती है।
  • बसा शरीर में उर्जा उत्पन्न करने का स्थाई स्रोत है हृदय की मांसपेशियों को बस ऐसे ही आवश्यक ऊर्जा मिलती है।
  • शरीर को यह विभिन्न प्रकार से सुरक्षा प्रदान करता है जैसे हृदय और गुर्दे के चारों ओर एकत्र होकर उन्हें बाहर के आघात से बचाता है। यह बता के कारण ही इस से स्थिरता प्राप्त करते हैं।
  • वसा को ग्रहण करने से शरीर को आवश्यक वसीय अम्ल प्राप्त होते हैं यह वसा स्वास्थ्य और शरीर की वृद्धि के लिए अत्यंत आवश्यक एवं उपयोगी होते हैं। यह त्वचा को निरोगी रखने में सहायता देते हैं।
  • हमारे शरीर में ताप नियंत्रण का काम भी वसा ही करती है। पूरे शरीर में त्वचा के नीचे बसा की एक परत बनी रहती है जो बहरी तापमान घटने पर भी शरीर के अंदर सामान्य स्थिति बनाए रखी है।
  • शरीर में वसा की उचित मात्रा होने से शरीर में विद्वान प्रोटीन को उस्मा प्रदान करने के लिए उपस्थित नहीं होना पड़ता है।
  • यह पाचन संस्थान को सुचारू रूप से बनाए रखने के लिए आवश्यक होती है इससे हमारी आँते और अमाशय चिकने बने रहते है जिससे उनकी गति सुचारु बनी रहती है।
  • वसा भोजन को स्वादिस्ट बनाने में भी सहायक होती है।
  • विभिन्न अस्थियों की संधियों के बीच वसा युक्त द्रव्य पाया जाता है। जो इन्हें आसानी से एक दूसरे के उपर फिसलने में मदद करता है।
  • यह शरीर में त्वचा के नीचे एकत्र होकर उसको सुंदर और सुडोल आकार प्रदान करती है।
  • पाचन क्रिया के समय पित्त और अगनयशियिक रस के प्रभाव से चर्वी हमारे रक्त में मिल जाती है। फिर इसके अलग हुए कण आपस में मिलकर चर्बी में बदल जाते है।

वसा की कमी से हानियाँ

  • सर्दियों में ताप पर नियंत्रण रखने में असुविधा रहती है।
  • सही पोषण के अभाव में त्वचा खुश्क वह खुरदरी हो जाती है। बाल खुश को होकर झड़ने लगते हैं।
  • इसकी कमी से जोड़ों में दर्द रहने लगता है क्योंकि अस्थि संधि के मध्य में उपस्थित द्रव्य सूखने लगता है।
  • इसकी कमी से बच्चों में किशोरों का शारीरिक विकास अवरुद्ध हो जाता है। बच्चे दुबले पतले तथा कमजोर हड्डियों का ढांचा मात्र रह जाते हैं।
  • बसा संग्रहित ऊर्जा के रूप में काम करती है। अतः इसके अभाव में यह कार्य प्रोटीन को करना पड़ता है जिससे शरीर की वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  • बसा की न्यूनता से पैरों में सूजन आ जाती है तथा शरीर में विटामिंस की कमी हो जाती है जो वसा में घुलनशील होते हैं।
  • कुछ भी काम करने से व्यक्ति शीघ्र ही थक जाता है। कमजोरी महसूस होती है तथा व्यक्ति सुस्त रहने लगता है।

वसा की अधिकता से हानियाँ

  • वसा की अधिकता से मोटापा बढ़ने लगता है। कई बार अधिक मोटापे से obesity की बीमारी हो जाती है। साथ ही मनुष्य के शुगर या मधुमेह नामक बीमारी होने का ख़तरा भी बन जाता है।
  • वसा प्रायः ह्रदय को रक्त ले जाने बाली नलिका में कोलेस्ट्रोल के रूप में जमा हो जाती है।जिस से ह्रदय आघात ( Heart Attack ) की संभावनाएं बढ़ जाती है।
  • वसा की अतिरिक्त मात्रा का खुलकर रक्त की नली गांव में जमा होने लगती है। जिससे रक्त के परिवहन में ह्रदय को ज्यादा ऊर्जा लगानी पड़ती है। जिस से हमारा ब्लड प्रेशर यस रक्त चाप सामान्य से अधिक बना रहता है।
  • शरीर में मौजूद वसा को शरीर से बाहर निकलने के लिए व्रक्को और गुर्दों को अतिरिक्त कार्य करना पड़ता है। जिस से कोशिकायें समय से पहले ही शिथिल हो जाती है। और लगातार एसी स्थिति बनी रहने से गुर्दे फेल भी हो जाते है।

वसा की दैनिक आवश्यकता

एक सामान्य मनुष्य को प्रतिदिन 35% वसा की मात्रा ग्रहण करनी चाहिए। तभी हम पूर्ण रूप से स्वस्थ और तंदुरुस्त रह सकते हैं।

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